विश्वास जीतने के लिए केंद्र ने खेला फारूक पर दांव
अनुच्छेद 370 हटाने के बाद उपजे हालात के बीच कश्मीर में लोगों का विश्वास जीतने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला को रिहा किया गया है। करीब सात माह से नजरबंद नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला की रिहाई घाटी में परिस्थितियों को सामान्य बनाने के प्रयास के रूप में देखी जा रही है।



पांच बार सांसद और तीन बार मुख्यमंत्री रहे फारूक की रिहाई का रास्ता इस बार भी उनके मित्र व रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत ने खोला। रूबिया अपहरण और कंधार प्रकरण में मध्यस्थता कर चुके दुलत इस बार भी फारूक अब्दुल्ला और केंद्र सरकार के बीच की कड़ी बने। गत 12 फरवरी को दुलत ने फारूक  से मुलाकात की थी। 

अनुच्छेद 370 हटाने से पहले 4 अगस्त 2019 की आधी रात को जब फारूक अब्दुल्ला को हिरासत में लिया गया, उसके बाद दुलत पहले शख्स थे जिन्हें उनसे मुलाकात करने की इजाजत मिली थी। सूत्रों के अनुसार, दुलत ने केंद्र का संदेश फारूक तक पहुंचाकर उन्हें घाटी में हालात को सामान्य बनाने में भूमिका निभाने के लिए तैयार किया।

परिसीमन आयोग के बन सकते हैं सदस्य
सूत्र बताते हैं कि केंद्र की ओर से डॉ. फारूक का सम्मान बरकरार रखने के लिए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिए गठित परिसीमन आयोग में सदस्य भी बनाया जा सकता है। केंद्र सरकार राज्य में उनकी स्वीकार्यता और अनुभव को देखते हुए इसका लाभ उठाना चाहती है। इस आयोग का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज रंजना प्रकाश देसाई को बनाया गया है।

मसूद की रिहाई के लिए फारूक को मनाया था
साल 1999 में वाजपेयी सरकार ने दुलत को ही अब्दुल्ला को मनाने भेजा था, ताकि वह इंडियन एअरलाइंस के अपहृत विमान आईसी-814 को अपहर्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के बदले आतंकी मसूद अजहर की रिहाई के लिए तैयार हो जाएं। फारूक अब्दुल्ला उस समय जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे।

रूबिया की रिहाई में भी दुलत की अहम भूमिका
इससे पहले 1989 में केंद्र में तीसरे मोर्च की सरकार थी और वीपी सिंह प्रधानमंत्री। उस समय रॉ के प्रमुख के रूप में दुलत ने तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की अपहृत बेटी रूबिया सईद की रिहाई के बदले पांच आतंकियों की रिहाई कराई थी। रूबिया का अपहरण जेकेएलएफ के आतंकियों ने किया था।

नेशनल कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि फारूक जम्मू-कश्मीर में मुख्य धारा की राजनीति के प्रतीक हैं। प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र सिंह राणा सहित अन्य नेताओं ने कहा, नेकां हमेशा से लोकतंत्र और सेक्यूलरिज्म का प्रतीक रही है। पार्टी अध्यक्ष की रिहाई प्रदेश में लोकतंत्र की जड़ों को नए सिरे से मजबूत करेगी। हम सरकार के कदम का स्वागत करते हैं और आग्रह करते हैं कि वह उमर अब्दुल्ला, पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती समेत पीएसए में बंद अन्य नेताओं को भी शीघ्र रिहा करे।
 


विपक्षी दलों ने किया स्वागत



डॉ. फारूक अब्दुल्ला की रिहाई का राजनीतिक दलों ने स्वागत किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे जम्मू-कश्मीर में वास्तविक राजनीतिक प्रक्रिया को बहाल करने की दिशा में उठाया गया सही कदम करार दिया। उन्होंने उम्मीद जताई, अब्दुल्ला को जल्द  लोकसभा में देख सकूंगा। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा, अब्दुल्ला की रिहाई लंबे समय से अपेक्षित थी। उन पर पीएसए लगाना गैरकानूनी है।

प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा, मैं अब्दुल्ला की लंबी आयु की कामना करती हूं। उम्मीद है उमर व महबूबा भी जल्द रिहा होंगे। पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट किया, अब्दुल्ला को बिना आरोप सात महीने हिरासत में रखने का क्या औचित्य था। अगर औचित्य था, तो रिहाई का क्या कारण है? राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने ट्वीट किया, रिहाई से खुशी हो रही है। उम्मीद है, दूसरे पूर्व सीएम भी जल्द रिहा होंगे।